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भारत में भूजल पुनर्भरण: क्यों धरती प्यासी है और उपाय क्या हैं?

  • लेखक की तस्वीर: worldoperatingmind
    worldoperatingmind
  • 22 मई
  • 4 मिनट पठन

Sure, here is a detailed article on groundwater recharge in India:



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भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की एक बड़ी आबादी अपनी आजीविका के लिए भूजल पर निर्भर करती है। लेकिन, बीते कुछ दशकों में भूजल के स्तर में चिंताजनक गिरावट दर्ज की गई है, जिससे 'धरती प्यासी' होने की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। आखिर कहाँ कमी है और क्यों, जब धरती कभी गीली रहती थी, आज सूखी है?

भूजल पुनर्भरण क्या है और इसका महत्व?

भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge) वह प्रक्रिया है जिसके तहत पानी जमीन की सतह से रिसकर भूमिगत जलभृतों (aquifers) में पहुँचता है और भूजल के स्तर को बढ़ाता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगीकरण और अनियमित जल दोहन के कारण इसमें असंतुलन आ गया है।

महत्व:

  • जल सुरक्षा: भूजल पेय जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।

  • कृषि सहायता: सिंचाई के लिए भूजल एक प्रमुख आधार है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

  • पारिस्थितिक संतुलन: यह नदियों, झीलों और आर्द्रभूमियों को बनाए रखने में मदद करता है।

  • सूखे से बचाव: भूजल का पर्याप्त स्तर सूखे की स्थिति में एक बफर के रूप में कार्य करता है।

कहाँ है कमी? क्यों धरती प्यासी है?

भारत में भूजल पुनर्भरण में कमी के कई कारण हैं:

1. अत्यधिक दोहन:

  • अनियमित बोरवेल: कृषि, औद्योगिक और घरेलू उपयोग के लिए अनियंत्रित रूप से गहरे बोरवेल खोदे जा रहे हैं, जिससे भूजल का स्तर तेजी से नीचे जा रहा है।

  • फसल पैटर्न: धान और गन्ने जैसी पानी की अधिक खपत वाली फसलों की खेती उन क्षेत्रों में भी हो रही है जहाँ पानी की कमी है, जिससे भूजल पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।

2. शहरीकरण और कंक्रीटीकरण:

  • अभेद्य सतहें: शहरों में सड़कें, इमारतें और अन्य कंक्रीट संरचनाएँ जल को जमीन में रिसने से रोकती हैं। इससे वर्षा जल सीधे नालियों में बह जाता है या वाष्पीकृत हो जाता है, बजाय भूजल में समाहित होने के।

  • झीलों और तालाबों का अतिक्रमण: कई शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में प्राकृतिक जल निकायों (झीलों, तालाबों) पर अतिक्रमण कर लिया गया है या उन्हें भर दिया गया है, जो प्राकृतिक पुनर्भरण के महत्वपूर्ण स्रोत थे।

3. वनों की कटाई और मृदा अपरदन:

  • जमीन का कटाव: वन और पेड़ मिट्टी को बांधे रखते हैं और पानी को धीरे-धीरे जमीन में रिसने देते हैं। वनों की कटाई से मिट्टी का कटाव बढ़ता है, जिससे पानी बह जाता है और कम पुनर्भरण होता है।

  • मिट्टी की संरचना: खराब मिट्टी प्रबंधन प्रथाओं से मिट्टी की जल सोखने की क्षमता कम हो जाती है।

4. जलवायु परिवर्तन:

  • अनियमित वर्षा: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा पैटर्न में बदलाव आया है, जिससे या तो बहुत कम बारिश होती है या फिर थोड़े समय में बहुत अधिक, जिससे पानी का प्रभावी पुनर्भरण नहीं हो पाता।

5. जागरूकता की कमी:

  • समुदाय की भागीदारी: भूजल संरक्षण के महत्व और इसके तरीकों के बारे में आम जनता में जागरूकता की कमी है, जिससे समुदाय की भागीदारी कम होती है।

धरती गीली रहती तो क्या फायदे होते?

यदि धरती का भूजल स्तर संतोषजनक रहता, तो इसके कई महत्वपूर्ण फायदे होते:

  • जल उपलब्धता में सुधार: पीने, कृषि और औद्योगिक उपयोग के लिए पानी की स्थायी उपलब्धता सुनिश्चित होती।

  • जल स्रोतों का पुनरुद्धार: सूख चुकी नदियाँ, झीलें और कुएँ फिर से जीवित हो उठते, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को लाभ मिलता।

  • बिजली की बचत: भूजल स्तर ऊपर होने से पानी को पंप करने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती, जिससे किसानों और उद्योगों पर वित्तीय बोझ कम होता।

  • सूखे और बाढ़ का प्रबंधन: उच्च भूजल स्तर सूखे की स्थिति में बफर का काम करता है, जबकि बेहतर जल प्रबंधन बाढ़ के जोखिम को कम कर सकता है।

  • मिट्टी की उर्वरता: स्वस्थ भूजल स्तर मिट्टी की नमी बनाए रखने और उसकी उर्वरता में मदद करता है।

  • जैव विविधता का संरक्षण: आर्द्रभूमि और नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को सहारा मिलता, जिससे विभिन्न पौधों और जानवरों के लिए आवास बना रहता।

उपाय: भूजल पुनर्भरण को कैसे बढ़ाया जाए?

भूजल स्तर को बढ़ाने और धरती को फिर से हरा-भरा करने के लिए एकीकृत और बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

1. वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting):

  • छत पर वर्षा जल संचयन: शहरी और ग्रामीण घरों में छतों पर गिरने वाले पानी को सीधे भूजल में रिचार्ज करने के लिए टैंकों या गड्ढों का निर्माण।

  • समुदायिक स्तर पर: सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों और सरकारी भवनों में बड़े पैमाने पर वर्षा जल संचयन प्रणालियाँ स्थापित करना।

2. जल संरचनाओं का निर्माण और पुनरुद्धार:

  • चेक डैम और परकोलेशन टैंक: छोटे-छोटे बांधों और तालाबों का निर्माण करना जो वर्षा जल को रोकते हैं और उसे धीरे-धीरे जमीन में रिसने देते हैं।

  • पुराने कुएँ और बावड़ियाँ: सदियों पुरानी पारंपरिक जल संरचनाओं को साफ और पुनर्जीवित करना।

  • तालाबों और झीलों का जीर्णोद्धार: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अतिक्रमण हटवाकर और गाद हटाकर पुराने तालाबों और झीलों को गहरा करना।

3. कृषि पद्धतियों में सुधार:

  • कम पानी की खपत वाली फसलें: किसानों को पानी की कम खपत वाली फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करना।

  • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई: पारंपरिक बाढ़ सिंचाई के बजाय आधुनिक और कुशल सिंचाई विधियों का उपयोग करना।

  • जैविक खेती: जैविक खाद का उपयोग करना जिससे मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है।

4. वन और हरित आवरण बढ़ाना:

  • वृक्षारोपण: व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण अभियान चलाना, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ भूजल स्तर गिरा है।

  • वन संरक्षण: मौजूदा वनों का संरक्षण करना और वनों की कटाई को रोकना।

5. कानून और नीतिगत उपाय:

  • भूजल विनियमन: भूजल के अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए सख्त कानून बनाना और उनका प्रभावी ढंग से पालन करवाना।

  • जलाधिकार: पानी के उपयोग और संरक्षण के लिए स्पष्ट नीतिगत दिशानिर्देश स्थापित करना।

6. जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी:

  • जन जागरूकता अभियान: भूजल संरक्षण के महत्व और विभिन्न पुनर्भरण तकनीकों के बारे में लोगों को शिक्षित करना।

  • स्थानीय निकायों की भूमिका: पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों को भूजल प्रबंधन में सक्रिय रूप से शामिल करना।


भारत में भूजल की समस्या एक जटिल चुनौती है, लेकिन यह असाध्य नहीं है। सरकार, समुदाय, किसान और उद्योग - सभी को मिलकर काम करना होगा। यदि हम भूजल पुनर्भरण के लिए गंभीरता से प्रयास करें और पानी का बुद्धिमानी से उपयोग करें, तो हम न केवल 'प्यासी धरती' की समस्या को हल कर सकते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जल सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। यह केवल पानी बचाने का मामला नहीं है, बल्कि जीवन बचाने का मामला है।

 
 
 

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